Tuesday, August 3, 2010

धरती को मिटने से बचाओ




















सोचती
हूँ कभी ये पृथ्वी कितने रंगों का साया है,
ना
जाने अपनी ओट में इसने कितने राजों को छुपाया है,
ऊपर
से तो बहुत देखा इसको, भीतर क्या होगा जानने का ख्याल आया है!

मगर एक बार को मेरा दिल कुछ सोच के घबराया है,
मेरे
मन में एक वहम सा आया है,
और
भीतर इसके जाने से मेरा मन घबराया है!

क्यूंकि ये धरती ही है जिसने अपने भीतर कितने ही कब्रों को सुलाया है,
पूर्व काल से ही ना जाने इसने अपने अंदर कितने ही खज़ानो को छुपाया है ,
जाने इस धरती को इश्वर ने क्यूँ इतना रहस्मई बनाया है !

मगर
एक बात तो सच है की वो धरती ही है,
जिसने हमारा जीवन से परिचय कराया है !
ना जाने अपने सीने पर इसने कितने ज़ख्मों को खाया है ,
बावजूद
इसके धरती ने केवल हम लोगों के लिये हमेशा, सोना ही उपजाया है!

इसी ने तो मेरे भारत को सोने की चिड़िया, का ताज पहनाया हैं,
ये धरती ही है जिसने अपने दामन में ,
बिन
भेद भाव के हम सभी को सदा अपनाया है,
और
हर घडी अपनी ममता और प्यार का रस हम सब पर बरसाया है !

हमने
धरती से बहुत कुछ पाया है, लेकिन आज जब खतरा इसके उपर आया है,
तो मेरी सभी भावनाओं ने मुझे झकझोर कर उठाया है,
और मैंने अपने सभी देशवासियों को ये कहने का बीड़ा उठाया है -

कि
उठ जाओ भाइयों, अपने फ़र्ज़ को अब याद करो,
और अपनी धरती को मिटने से बचाने का संभव प्रयास करो !

When we heal the earth, we heal ourselves.

No comments:

Post a Comment