Monday, August 16, 2010

भगवान् हैं माता पिता !




















आंधी
आती है तूफ़ान चले जातें है,
जो होतें हैं अपने अक्सर,वही छुड़ा कर सबसे पहले हाथ चलें जातें हैं !

आज माता पिता से पहले बच्चों को अपने दोस्त, ख़ास नज़र आतें हैं ,
ना जाने क्यूँ खुद के पैरों पर खड़े होते ही आज बच्चों को,
अपने माता पिता क्यूँ बेकार नज़र आतें हैं !

अरे, बचपन से जो हाथ निवाला खिलातें हैं मूं में,
गर्मी लगने पर खुद जल कर भी जो बचातें है लूँ में,
वो जो हर घड़ी, हर पल बसातें हैं तुम्हें अपनी रूह में,
किस तरह भूल जातें है लोग, अपने खून के रिश्तों को अपनी दौलत के जुनूं में !

मगर भूल जातें है कहीं, कि जिन्हें आज,
वो बेकार और लाचार समझ ठुकराना चाहेतें हैं कहीं,
ये वही शक्शियत हैं, जिन्होंने चलना सिखाया था उन्हें कभी!

वक़्त कभी भी एक सा नहीं रहता,ना बदलतें है खून के रिश्ते कभी,
समय अभी भी है, रोक लो अपने माता पिता को दूर जाने से कहीं,
वर्ना एक दिन ऐसा भी आएगा, तुम ढूँढोगे उन्हें दर बदर,
मगर वो तुम्हे ना मिल पायेंगे कहीं!

ताउम्र मंदिर मस्जिद के चक्कर काट कर भी तुम,
अपने भगवान् तुल्य माता-पिता को पा ना सकोगे,
चाहे कुछ भी कर लो ,उनके अहसानों का सिला चूका ना सकोगे !

भगवान् तो मिलने से रहे, नरक में भी जगह पा ना सकोगे,
पिता के उपकार और माता के ढूध का क़र्ज़ तुम कभी भी चूका सकोगे!
गर, आज तुम आगे बढ़ कर अपने माता पिता को अपना ना सकोगे,......... अपना ना सकोगे!

Tuesday, August 3, 2010

धरती को मिटने से बचाओ




















सोचती
हूँ कभी ये पृथ्वी कितने रंगों का साया है,
ना
जाने अपनी ओट में इसने कितने राजों को छुपाया है,
ऊपर
से तो बहुत देखा इसको, भीतर क्या होगा जानने का ख्याल आया है!

मगर एक बार को मेरा दिल कुछ सोच के घबराया है,
मेरे
मन में एक वहम सा आया है,
और
भीतर इसके जाने से मेरा मन घबराया है!

क्यूंकि ये धरती ही है जिसने अपने भीतर कितने ही कब्रों को सुलाया है,
पूर्व काल से ही ना जाने इसने अपने अंदर कितने ही खज़ानो को छुपाया है ,
जाने इस धरती को इश्वर ने क्यूँ इतना रहस्मई बनाया है !

मगर
एक बात तो सच है की वो धरती ही है,
जिसने हमारा जीवन से परिचय कराया है !
ना जाने अपने सीने पर इसने कितने ज़ख्मों को खाया है ,
बावजूद
इसके धरती ने केवल हम लोगों के लिये हमेशा, सोना ही उपजाया है!

इसी ने तो मेरे भारत को सोने की चिड़िया, का ताज पहनाया हैं,
ये धरती ही है जिसने अपने दामन में ,
बिन
भेद भाव के हम सभी को सदा अपनाया है,
और
हर घडी अपनी ममता और प्यार का रस हम सब पर बरसाया है !

हमने
धरती से बहुत कुछ पाया है, लेकिन आज जब खतरा इसके उपर आया है,
तो मेरी सभी भावनाओं ने मुझे झकझोर कर उठाया है,
और मैंने अपने सभी देशवासियों को ये कहने का बीड़ा उठाया है -

कि
उठ जाओ भाइयों, अपने फ़र्ज़ को अब याद करो,
और अपनी धरती को मिटने से बचाने का संभव प्रयास करो !

When we heal the earth, we heal ourselves.

Monday, August 2, 2010

ख्वाहिशों के समंदर
















ख्वाहिशों
के समंदर में गोता लगा ले तू,
सपनो को ना छोड़, कदमों को आगे बढ़ा ले तू ,

ख़ुश होने के मौके ना तलाश,
हर
मौसम में मुस्कुरा ले तू !

हर बीज पेड़ ही बने ,क्यूँ ऐसी उम्मीदें ही बस पाले तू,
क्यूँ हर घड़ी, बस नाकामयाबीयों की ख़ाक छाने तू !

क्यूँ नहीं, अपनी कामयाबीयों की तरफ एक दृष्टी डाले तू ,
क्यूँ बेवजह ही, दुनिया भर के ग़मों को, अपने छोटे से दिल में पाले तू!

सुन सके तो सुन मेरी बात, बहुत छोटी है ज़िन्दगी,
हो सके तो गम को छोड़, खुशियों से इसे सजा ले तू !

ख्वाहिशें होगी तेरी पूरी सभी ,बस थोडा सा यकीं- खुद में जगा ले तू ,
बस एक दफा,ख्वाहिशों के समंदर में गोता लगा ले तू!

क्या कहता है एक नन्हा तारा
















एक
तारे ने कहा मुझसे ,मैं धरती से बहुत स्नेह करता हूँ ,
मैं धरती कि सुन्दरता को, अपनी आँखों में सदा भरता हूँ !

कितनी प्यारी नदियाँ, कितने प्यारे उपवन हैं ,
फूल हैं रंग बिरंगे, तितलियाँ कितनी सुंदर हैं !

मैं तो एक नन्हा सा तारा हूँ ,
पर
अपने चमन का प्यारा हूँ ,
सभी
कि आँखों का राज दुलारा हूँ !

पर मेरी आँखों का भी, है एक सपना प्यारा ,
मैं भी देखूं धरती का सुंदर नज़ारा!

पर सोचता हूँ तो डर जाता हूँ,
कि
- क्या मिलेगा धरती पर भी मुझे ऐसा ही परिसर प्यारा?
या टूट कर बिखर जाऊँगा में सारा!

मैं तो रोशनी करता हूँ ,रात के अंधेरें को हरता हूँ,
लेकिन
ये सच है, कि धरती पर आने से कहीं डरता हूँ !
मैं यहाँ अपने अस्तित्व को खोने से डरता हूँ ,
अपनों से अलग होने से डरता हूँ !

इसीलिए शायद, मैं धरती कि सैर सिर्फ सपनो में ही किया करता हूँ !!