Monday, March 28, 2011
नन्हा सा परिंदा
एक नन्हे से परिंदे का दर्द भरा फसाना था ,
टूटे थे पंख और उड़ते हुए उसे अपने घोंसले तक जाना था !
जीवन था नया, ज़िन्दगी कि राहों से वो अनजाना था,
अब तक जो रहा था सिर्फ घोंसले में, आज सामने उसके जहान सारा था!
दूर दूर तक देख रहा था, ना तो कोई साथी ना ही किसी रिश्ते दार का कोई सहारा था,
फिर भी वो नन्हा, परिंदा ना था बेबस और ना ही वो अपनी उम्मीद से कभी हारा था !
उडते उडते वो पहुँच ही गया घोंसले तक अपने, जो उसके जीवन का खजाना था,
उसके जीवन कि हर ख़ुशी हर हंसी का वो घोंसला ही एक मात्र ठिकाना था,
लेकिन वक़्त ने साजिश करी कुछ ऐसी कि टूटी वही डाली, जिस पर उस नन्हे परिंदे का आशियाना था !!
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